प्रार्थना व कर्म द्वारा हम विश्वास को लगातार जीने के लिए बुलाये गये हैं
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, रविवार, 1 सितंबर 2024 (रेई) : वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 1 सितम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
आज, धर्मविधि के सुसमाचार पाठ में (मार. 7:1-8, 14-15, 21-23), येसु शुद्ध और अशुद्ध के बारे बोलते हैं: यह विषय उनके समकालीनों को बहुत प्रिय था, जो मुख्यतः रीति-रिवाजों और आचरण के नियमों के पालन से जुड़ा था, किसी भी ऐसी चीज या व्यक्ति के संपर्क से बचना था जिसे गंदा माना जाता और अगर ऐसा हो भी जाए तो दाग मिटा लेना था। (लेवी. 11-15)
संत पापा ने कहा, “कुछ शास्त्री और फरीसी, जो ऐसे नियमों का सख्ती से पालन करते थे, येसु पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने अपने शिष्यों को “बिना हाथ धोए, अर्थात् अशुद्ध हाथ से” भोजन करने की अनुमति दी।” (मार. 7:2), और येसु फरीसियों की इस भर्त्सना को अपने शिष्यों तक ले जाते, एवं हमें "शुद्धता" का अर्थ बताते हैं।
येसु कहते हैं कि इसका सम्बन्ध बाह्य रीति-रिवाजों से नहीं है, बल्कि सबसे पहले यह आन्तरिक स्वभाव से जुड़ा है। इसलिए, शुद्ध होने के लिए, कई बार हाथ धोने से कोई फायदा नहीं है, क्योंकि इससे व्यक्ति के मन में लालच, ईर्ष्या और अहंकार जैसी बुरी भावनाएँ नहीं धुलतीं।” यह कर्मकाण्ड है, जो व्यक्ति को अच्छाई में नहीं बढ़ाता; बल्कि इसके विपरीत, यह कर्मकांड कभी-कभी व्यक्ति को स्वयं में तथा दूसरों में प्रेम के विपरीत विकल्पों और दृष्टिकोणों को अपनाने, या यहां तक कि उन चीजों को उचित ठहराने की ओर ले जाता है, जो आत्मा को घायल करते एवं हृदय को बंद कर देते हैं।
संत पापा ने कहा, भाइयो एवं बहनो “और यह, हमारे लिए भी महत्वपूर्ण है: उदाहरण के लिए, हम पवित्र मिस्सा से निकलकर और, गिरजाघर के प्राँगण में ही, हर चीज और हर किसी के बारे में बुरी और निर्दयी गपशप करने के लिए नहीं रूक सकते। यह बकवास जो दिल को बर्बाद कर देता, आत्मा को बर्बाद करता है।
संत पापा ने विश्वासियों से कहा, “ऐसा नहीं हो सकता! कि आप पवित्र मिस्सा में जाएँ और फिर प्रवेश द्वार पर ही ये चीजें करें, यह बुरी बात है! प्रार्थना में स्वयं को पवित्र दिखना, लेकिन फिर घर पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ गुनगुना और उदासीनता का व्यवहार करना, या अपने बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा करना, जिन्हें सहायता और साथ की आवश्यकता है।”
संत पापा ने इसे दोहरा जीवन बताया और कहा कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। और फरीसियों ने यही किया। बाहरी पवित्रता, दूसरों के प्रति अच्छे और दयालु व्यवहार के बिना या सभी के प्रति बहुत निष्पक्ष रहे बिना, हो सकता है कि थोड़ी स्वयंसेवा और कुछ परोपकारी कार्य किये हों, लेकिन अंदर ही अंदर दूसरों के प्रति नफरत पालते, गरीबों को तुच्छ समझते या अपने काम में बेईमानी करते थे।
संत पापा ने कहा कि ऐसा करने से, ईश्वर के साथ संबंध बाहरी इशारों तक सीमित हो जाता है, और आंतरिक रूप से हम उनकी कृपा की शुद्धिकरण क्रिया के प्रति अप्रभावित रहते हैं, प्रेम से रहित विचारों, संदेशों और व्यवहारों में लिप्त रहते हैं।
संत पापा ने कहा, “परन्तु हम किसी और चीज के लिए बने हैं। हम जीवन की पवित्रता, कोमलता एवं प्रेम के लिए बने हैं।”
तो आइए, हम अपने आप से पूछें: क्या मैं अपने विश्वास को सुसंगत तरीके से जीता हूँ, अर्थात, जो मैं गिरजाघर में करता हूँ, क्या मैं उसे उसी भावना के साथ बाहर भी करने की कोशिश करता हूँ?
क्या मैं भावनाओं, शब्दों और कर्मों से, प्रार्थना में जो कुछ कहता हूँ उसे भाइयों के प्रति निकटता और सम्मान के माध्यम से ठोस बनाता हूँ? आइए इसपर चिंतन करें।
तब संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करते हुए कहा, “मरियम, अति निष्कलंक माँ, हमें अपने जीवन को, प्रेम की अनुभूति और अभ्यास में, ईश्वर को प्रसन्न करने वाली पूजा बनाने में मदद करें। (रोम 12:1)।
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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