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वाटिकन में विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित विभाग का मुख्यालय वाटिकन में विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित विभाग का मुख्यालय 

सैद्धांतिक घोषणा ने अनियमित परिस्थितियों में दम्पतियों को आशीर्वाद देने की संभावना खोली

वाटिकन में विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित विभाग द्वारा जारी “फिदूचा सुप्लिकान्स” जिसको संत पापा फ्राँसिस ने स्वीकृति प्रदान की है, की घोषणा के साथ समलैंगिक जोड़ों की आशीष सम्भव हो गई है, लेकिन इसे किसी प्रकार के अनुष्ठान या विवाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। ध्यान देनेवाली बात है कि विवाह के संबंध में सिद्धांत नहीं बदला है, और यह आशीर्वाद संबंध की स्वीकृति का प्रतीक नहीं है।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 19 दिसंबर 2023 (रेई) : जब दो दम्पति, चाहे वे “अनियमित” परिस्थिति में ही क्यों न जी रहे हों, आशीष की याचना करते हैं तो एक अभिषिक्त पुरोहित के लिए आशीष देना संभव होगा। हालाँकि, प्रेरितिक निकटता के इस भाव में, उन सभी तत्वों से बचना चाहिए जो विवाह संस्कार से मिलता-जुलता हो।

विश्वास के सिद्धांत विभाग द्वारा प्रकाशित और पोप फ्राँसिस द्वारा अनुमोदित, आशीर्वाद के प्रेरितिक अर्थ पर घोषणा "फिदूचा सुप्लिकान्स" में यही कहा गया है।

दस्तावेज, आशीष विषय का पता लगाता है, संस्कार के अनुष्ठान और धर्मविधिक क्रिया-कलाप के बीच अंतर स्पष्ट करता है, और लोकप्रिय भक्ति के चिन्ह को अधिक सहज बनाता है। यह वास्तव में, दूसरी श्रेणी के अनुसार उन लोगों का भी स्वागत करना संभव बनाता है जो ख्रीस्तीय नैतिक सिद्धांत के नियम अनुसार नहीं जीते, लेकिन विनयपूर्वक आशीष की याचना करता है। पूर्व “हॉली ऑफिस” के ऐसे सैद्धांतिक महत्व के दस्तावेज़ की घोषणा के बाद अब 23 साल बीत चुके हैं (पिछला घोषणापत्र अगस्त 2000 में “दोमिनुस येसुस” के साथ हुई थी)।

“फिदूचा सुप्लिकान्स" की शुरूआत प्रस्तावना से होती है जिसको कार्डिनल भिक्टर फर्नांडेस ने लिखा है, जो बतलाती है कि घोषणापत्र "आशीर्वाद के प्रेरितक अर्थ" पर विचार करता है, जो "पोप फ्राँसिस के प्रेरितिक दृष्टिकोण के आधार पर" ईशशास्त्रीय चिंतन के माध्यम से "शास्त्रीय समझ के विस्तार और संवर्धन" की अनुमति देता है।

यह एक चिंतन है कि "आशीष के बारे में अब तक जो कहा गया है, उसमें एक वास्तविक विकास का तात्पर्य यह है कि अनियमित स्थितियों में दम्पतियों और समान-लिंग वाले जोड़ों को आधिकारिक तौर पर उनकी स्थिति को मान्यता दिये बिना या विवाह पर कलीसिया की चिरस्थायी शिक्षा पर किसी भी तरह से बदलाव किये बिना आशीष देने की संभावना की समझ तक पहुंचना है।"

पहले परिच्छेद के बाद (1-3) यह 2021 की पिछली घोषणा को याद करता है जिसे अब और अधिक विस्तृत एवं प्रतिस्थापित किया गया है, घोषणा विवाह संस्कार की आशीष को प्रस्तुत करता है। (अनुच्छेद 4-6) उन प्रार्थनाओं और धर्मविधियों को अमान्य रूप में प्रस्तुत करता है जो विवाह संस्कार और विवाह संस्कार के विपरीत, के बीच भ्रम उत्पन्न कर सकता है। किसी भी निहितार्थ से बचते हुए कि "जो चीज विवाह नहीं है उसे विवाह के रूप में मान्यता दी जा रही है।" यह दोहराया गया है कि "चिरस्थायी काथलिक सिद्धांत" के अनुसार केवल विवाह के संदर्भ में एक पुरुष और एक महिला के बीच यौन संबंधों को वैध माना जाता है।

घोषणापत्र का दूसरा व्यापक भाग (अनुच्छेद 7-30) विभिन्न आशीर्वादों के अर्थ का विश्लेषण करता है, जिनके प्राप्तकर्ता व्यक्ति, पूजा की वस्तुएँ और जीवन के स्थान हैं। यह याद किया जाता है कि "सख्त धार्मिक दृष्टिकोण से," आशीर्वाद के लिए आवश्यक है कि जो आशीर्वाद दिया जाए वह "ईश्वर की इच्छा के अनुरूप हो, जैसा कि कलीसिया की शिक्षाओं में व्यक्त किया गया है।"

“घोषणा में कहा गया है, जब एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से कुछ मानवीय रिश्तों पर आशीर्वाद का आह्वान किया जाता है, तो "यह आवश्यक है कि जो आशीर्वाद दिया जाता है वह सृष्टि में रचे गए ईश्वर की योजना से मेल खाता हो" (अनुच्छेद 11)।

इसलिए, कलीसिया के पास अनियमित या समलैंगिक दम्पति को धार्मिक आशीष देने की शक्ति नहीं है। केवल इस दृष्टिकोण तक आशीष के अर्थ को कम करने के जोखिम से बचते हुए, एक साधारण आशीर्वाद की अपेक्षा करना "एक साधारण आशीर्वाद के लिए वही नैतिक शर्तें आवश्यक हैं जो संस्कारों को ग्रहण करने के लिए आवश्यक हैं" (अनुच्छेद 12))

धर्मग्रंथ में आशीर्वादों का विश्लेषण करने के बाद, घोषणापत्र एक धार्मिक-प्रेरितिक समझ प्रदान करता है। जो लोग आशीर्वाद मांगते हैं वे "ईश्वर की सहायता के लिए एक याचना, बेहतर जीवन जीने की एक अर्जी" (अनुच्छेद 21) करके अपने जीवन में "ईश्वर की उपस्थिति की आवश्यकता" व्यक्त करते हैं।

इस अनुरोध को "धार्मिक ढांचे के बाहर" तब स्वीकार किया जाना चाहिए और महत्व दिया जाना चाहिए जब इसे "अधिक सहजता और स्वतंत्रता के दायरे में" पाया जाए (अनुच्छेद 23)।

जब उन्हें लोकप्रिय धर्मपरायणता के परिप्रेक्ष्य से देखा जाता है, तो "आशीर्वाद का मूल्यांकन भक्ति के कार्यों के रूप में किया जाना चाहिए।" घोषणा में कहा गया है कि आशीर्वाद का अनुरोध करनेवालों को पूर्व शर्त के रूप में "पूर्व नैतिक पूर्णता की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए"।

इस अंतर की खोज, पिछले अक्टूबर में प्रकाशित दुबिया (संदेह) पर पोप फ्रांसिस की प्रतिक्रिया के आधार पर किया गया है, जिसमें "एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा अनुरोध किए गए आशीर्वाद के रूपों की संभावना पर विचार करने का आह्वान किया गया था, जो विवाह की गलत अवधारणा को व्यक्त नहीं करते हैं" (अनुच्छेद 26), घोषणापत्र इस बात की पुष्टि करता है कि इस प्रकार का आशीर्वाद "बिना किसी आवश्यकता के सभी को दिया जाता है", जो लोगों को यह महसूस करने में मदद करता है कि उनकी गलतियों के बावजूद वे आशीष करते हैं और "उनके स्वर्गीय पिता उनकी भलाई करना जारी रखते हैं और आशा करते हैं कि वे अंततः खुद को अच्छाई के लिए खोल देंगे।" (अनुच्छेद 27)।

"ऐसे कई अवसर होते हैं जब लोग अनायास आशीर्वाद मांगते हैं, वे चाहे तीर्थयात्रा पर हों, धार्मिक स्थलों पर हों, या यहां तक कि सड़क पर भी, जब वे किसी पुरोहित से मिलते हैं और आशीर्वाद" सभी के लिए होता है; उनमें से किसी को भी बाहर नहीं रखा जाएगा” (अनुच्छेद 28)।

हालांकि ऐसे मामलों के लिए "प्रक्रियाएँ या अनुष्ठान" स्थापित करना उचित नहीं है, पुरोहित उन व्यक्तियों की प्रार्थना में शामिल हो सकते हैं, जो "हालांकि एक ऐसे संबंध में हैं जिसकी तुलना किसी भी तरह से विवाह से नहीं की जा सकती है, फिर भी वे खुद को ईश्वर और उनकी दया के लिए सौंपने की इच्छा रखते हैं", उनकी मदद का आह्वान, प्रेम एवं सच्चाई की उनकी योजना की एक विस्तृत समझ हेतु निर्देशित होने के लिए करना चाहते हैं।”(अनुच्छेद 30)।

घोषणा का तीसरा भाग (अनुच्छेद 31-41) इन आशीर्वादों की संभावना को खोलता है जो उन लोगों के लिए एक संकेत का प्रतिनिधित्व करता है जो "खुद को निराश्रित मानते हैं और उनकी मदद की जरूरत है - अपनी स्थिति के वैधीकरण का दावा नहीं करते हैं, लेकिन जो प्रार्थना करते हैं कि उनके जीवन और उनके रिश्तों में जो कुछ भी सच्चा, अच्छा और मानवीय रूप से मान्य है, वह पवित्र आत्मा की उपस्थिति से समृद्ध, चंगा और ऊंचा हो जाए" (अनुच्छेद 31)।

वक्तव्य में कहा गया है कि इस आशीर्वाद को आवश्यक रूप से नियम नहीं बनना चाहिए, बल्कि "विशेष परिस्थितियों में व्यावहारिक विवेक" को सौंपा जाना चाहिए (अनुच्छेद 37)।

यद्यपि दम्पति को आशीर्वाद दी गई है, लेकिन संबंध को नहीं, घोषणा में कहा गया है कि आशीष की प्राप्ति दो लोगों के बीच वैध संबंध में है: "इस सहज आशीर्वाद से पहले एक संक्षिप्त प्रार्थना में, पुरोहित, व्यक्तियों को शांति, स्वास्थ्य, धैर्य, संवाद और पारस्परिक सहायता की भावना के लिए याचना कर सकते हैं - लेकिन साथ ही उनकी इच्छा को पूरी तरह से पूरा करने में सक्षम होने के लिए ईश्वर के प्रकाश और शक्ति की भी जरूरत है।" (अनुच्छेद 38)।

यह भी स्पष्ट किया गया है कि "किसी भी प्रकार के भ्रम या ठोकर" से बचने के लिए, जब अनियमित स्थिति में किसी दम्पति या समान-लिंग वाले जोड़े आशीर्वाद मांगते हैं, तो इसे "नागरिक संघ के समारोहों के साथ सहमति में कभी नहीं दिया जाना चाहिए, और न ही उनसे संबंधित अन्य चीजों में ही दिया जाना चाहिए। उसे न तो किसी ऐसे परिधान, हाव-भाव या शब्दों के साथ किया जाना चाहिए जो शादी के लिए उपयुक्त हो” (अनुच्छेद 39)। इस प्रकार का आशीर्वाद "इसके बजाय अन्य संदर्भों में दिया जा सकता है, जैसे कि किसी तीर्थस्थल की यात्रा, पुरोहितों से मुलाकात, सामूहिक प्रार्थना, या तीर्थयात्रा के दौरान।" (अनुच्छेद 40)।

अंत में, चौथा अध्याय (अनुच्छेद 42-45) याद दिलाता है कि "यहां तक ​​कि जब किसी व्यक्ति का ईश्वर के साथ संबंध पाप से घिरा होता है, तो वह हमेशा ईश्वर के सामने अपना हाथ बढ़ाकर आशीष मांग सकता है" और आशीर्वाद की इच्छा करना कुछ स्थितियों में अच्छा हो सकता है” (अनुच्छेद 43)।

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19 December 2023, 16:50